भारतीय रथेना में अफसर रहे अपने पति कै साथ डॉ. विल्कु अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, कष्टमीर और त्नदूदारव्र कै दुर्गम ब्लाकों में डॉक्टरट की तरह काम कर चुकी हैं 1 सत् 1979 में एक निर्जन पहाडी ल्लार्क में दुर्घटनाग्रस्त एक बस में घायल दर्जनों लोगों को जाने अकेले हीं बचाने कै कारण मिजोरम सरकार तथा असम राइफल्स ने डॉ. विल्बदु को सम्मानित किया था । अंटार्कटिका में विंर्टारेंग करकै लौटने पर ‘उम्हें अनेक पुरस्कार और सम्मान मिल चूकै हैं । अखबारों तथा पत्रिकाओं में उनर्क बारे में काफी…-कुछ लिखा गया है । उनकै भी कई लेख प्रकाशित हो चूकै हैं, विमिन्न टीबी. चैनलों पर उनकै कई साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं । अंटार्कटिक अभियानों में भारतीय महिलाओ कै योगदान की संभावनाओं र्क बारे में उनकै मन में कोई भी संदेह नहीं है । वे कहती हैं कि भारतीय महिलाएँ हर क्षेत्र में सक्षम हैं और पुरुषों कै समान ही योग्य हैं । वे उम्हें इन अभियानों में भाग लेकर 3मृपने क्षेत्र में कार्य करने कै लिए प्रेरित करती हैं । चार महीने की अडाकॉंटेक “क्या टीम’ में जाने में तो कोई भी समस्या ही नहीं है. कोई भी महिला इसमें बिना संकोच कै जा सकती है। हाँ’ अंटग्यर्दटिका में 1 6 महीने कै लिए ‘क्टिर” करने पर कुछ विशेष चुनौतियां सामने आती हैं, जिनमें घर…परिचार की जिम्मेदारी कौ डेढ साल
कै लिए छोड देना, एक बर्ष तक सारी मानव सभ्यता से कटकर नितांत एकांत में रहना, चाहर जाने पर तूफानी हवाओं न कड़ार्क की सर्दी कै मौसम का सामना करना, अपने वैज्ञानिक या सहायक प्रोजेक्ट को साल मर यूरी जिम्मेदारी से निभाना और उसक अलावा स्टेशन कै रख-रखाव कै सामूहिक कार्यों में भाग लेना आदि प्रमुख हैं । पर इन सबको भी कोई भी महिला संघर्ष करर्क सफ़लतापूर्वक पूर्ण कर सकती है ।
लेकिन डॉ. बिल्लू का अनुभव है कि सबसे बडी समस्या आती हैं पुरुषों की मानसिकता से, जो हमेशा अपने को महिलाओँ से अधिक योग्य मानते हैं । किसी क्षेत्र में कोई महिला उनसे अधिक समर्थ है, यह स्वीकार करना उनकें अहंकार क लिए संभव नहीं होता । बिशेष रूप से अंटार्कटिका में त्तो हमेशा से पुरुषों का ही दबदबा रहा है । यहाँ तो वे हर तरह से अपने को श्रेष्ठ मानते हैं । यह भावना शायद कवल भारतीय अंटार्कटिक स्टेशन तक ही सीमित नहीं है, अन्य देशों र्क. अंटार्कटिक केंद्र भो पुरुषों कै इसी दंभ से भरे हुए हैं । इसका एक बडा सटीक उदाहरण अंटार्कटिका की ही एक पुस्तक में वर्णित है, जब पहली चार अमेरिकी स्टेशन “मेकपुर्डों’ पर दो अमेरिकी महिला सदस्य “पहुँचीं तो वहॉ रह रहे पुरुषों ने उनको इतना गया-गुजरां समझा कि कोई भी चाहर निकल कर उनसे मिलने तक नहीं आया ! पुरुषों का यह अहंकार और विचारों को यह ‘ संकीर्णता उनकी बोलचाल में, दैनिक व्यवहार में और हर छोटे-बड़े कार्य में अभिव्यक्त होती है । जब विंटर टोम में चाकी सारे सदस्य कैवल पुरुष ही हॉ तो अर्कस्ते रहनेवाली महिला को इससे एक अतिरिक्त मानसिक दबाव का सामना पूरे साल भर करना पड़ता है, जो उसक लिए सबसे बडी चुनौती बन जाती है । इस कारण उनका सुझाव है कि भविष्य की किसी टीम में यदि दो महिलाएँ एक साथ विंटसिंऊ करें तो 16 महीने का यह अंटार्कटिक एकांतवास उनकें लिए मानसिक रूप से अधिक आसान हो जाएगा।
यह उल्लेखनीय हैं कि भारत सरकार ने अंटार्कटिक अभियानों में विशिष्ट योगदान कै लिए एक ‘अंटार्कटिका अवार्ड’ स्थापित किया हूआ है । भारतीय महिलाओं में से तीन वैज्ञानिकों डॉ. सुदीप्ता सेनगुप्ता, डाँ. अदिति
पंत, डॉ. जया नैथानी और एक मेडीकल ओंफीसर डाँ. र्कवल बिल्कु को स्म ‘अंटार्कटिका अवार्ड’ से सम्मानित किया जा चुका है ।