पैंगुइन की बस्तियॉ ‘रुकरो’ कहलाती हैं । हर साल ऐक्ली पेंगुइन लगभग उसी स्थान पर लोटकर अपनी बस्ती बसात्ती हैं । घोंसला बनाने कै ये स्थान इनकी बीट से भरे होते हैं । इस बीट में पाए जानेवाले कार्बन कै अंश को ‘काबंनड-डेटि’ग’ की विधि द्वारा ‘ठीक-ठीक भापकर इसकी उम्र बताई जा सकती है । ऐडली पैगुइन कौ अब तक सबसे पुरानी बस्ती लगभग 6400 साल पहले की पाइं गई है: यानी इंसा क भी 4000 साल पहले से ये पैंगुइनें हर साल इसी जगह पर घोंसला बनाने आती रही हैं !
एंडलाँ कॅ झुडे कॅ साथ एक एंम्यरर
ऐडली पेंगुइन गरमी कै मौसम कै आरंभ होते ही अक्तुबर में अंटार्कटिका कै तट पर पहूँचने लगती हैं । ये अपना घोंसला पथरीले इलाकॉ मॅ बनाना पसंद करती हैं, छोटे-छोटे कंकड बीनकरा इस कारण अंटार्कटिका र्क तट कै पास जहॉ भी पहाडियों हैं, वे इनक पसंदीदा स्यान हैं । यदि पत्थर न मिलें तो यह आदमी कै द्वारा छोडे हुए किसी भी सामान’ कै ऊपर अपना घर बना लेती हैं, जैसे कोई तेल का बैरल, पुराना जोहा-लंगड़, गाडियों कै करन-पुर्जे आदि । जो पक्षी जल्दी आ जाते हैं, वे छोटे-छोटे कंकड बटोरकर अपना घोंसला बनाने लगते हैं । चाद में आनेवाली पैंगुइनॉ को अगर उपयुक्त कंकड-पत्थर नहीं मिलते तो वे बने हुए घोंसलॉ में से कंकड चुराने को कोशिश करती हैं 1 इस चोरीड-सीनाजोरौ
कै चक्वार में रुकरी में खूब लडाई-झगडे होते हैं । जो पक्षी ताकतवर होता है, उसका घोंसला बड़ा होता जाता है, कभी-कभी तो जरूरत सै भी ज्यादा बड़ा और ऊँचा । किसी लालची इनसान की तरह ही कुछ पेंगुइन तो इतने कंकड बटोर लेती हैं कि अपनी ऊँचाई तक का घोंसला बना डालती हैं, फिर भस्ने ही उस घर में अपना-जाना खुद उनर्क लिए ही एक समस्या बन जाए 1
वैज्ञानिकों ने इसका कारण भी जानने की कोशिश की है कि ऐडली कंकडों का इस तरह का घोंसला बनाती ही क्यों है ? इसका मूत्न उदृदेश्य है अपने अंडे देने की जगह क्रो अपस-पास की जमीन से थोडा ऊँचा उठाना, ताकि बर्फ पिघलने पर पिघला हुआ पानी अंडे या चूजे क्रो गोला
बी’स्रलं में अंडे पा बैठी एक एंडलां
न करे । दूसरा एक सामाजिक कारण भी है, इस बैठने क्री जगह को ” अपना इलाका’ घोषित करमा, जिससे दूसरी पैंगुहन उस क्षेत्र से दूर रहें ९ इस कारण यह देखा गया है कि दो घोंसलों कै बीच में कम-से-कम दो पैंगुइनों की लंबाई से अधिक की दूरी हमेशा होली है, जिससे वे दोनों ही एक-दूसरें की चोंच की पहुंच कै जाहर रहें 1
नवंबर में मादा ऐडली एक या दो अंडे देती है अधिकांश मामलों में दो । इसका अंडा सफेद ही होता है, लेकिन मुरगी कै अंडे से थोड़ा
व्रड़ा और स्कूआ कै चित्तीदार अंडे से भी बड़ा । दो अंडे देने का कारण है, दिसंबर से फरवरी तक की अंटार्कटिका की छोटी सी गरमी को ऋतु । इसी समय कै भीतर बच्चे क्रो जन्म लेने से शूरू कर खाना-पीत्मा बडे होना, मजबूत बनना, अपने बलबूते पर सागर में शिकार करना और फिर शीतकालीन प्रवास कै लिए सैंकडों किलोमीटर तैरकर दूसरे द्वीपों पर जाने लायक बनना होता है । सामान्य रूप से नवंबर मॅ घोंसलों में अंडे आ जाते हैं तथा दिसंबर में चूजे निकल आते हैं । दो महीने तक इन चूजों को मॉ-जाप से आहार और सुरक्षा की आवश्यकता
होती है ।