इसर्क बाद ठंड से बचने का दूसरा कवच है मोटापा । हर पेंगुइन का सारा शरीर चरबी की एक दीवार जैसी मोटी परत से ढका होता हैं । ऐम्यरर पेंगुइन में तो यह परत 2 इंच तक मोटी होली है, यानी साइकिल कै हवा भरे हुए टूयूब्र जैसी ओटी 1 और यह चरबी उसफे पूरे वजन का लगभग आधा माग ढोती है, थानी देह र्क कूल 40 किलो में से 2० किलो में नोवल चरबी तथा बाकी 20 किलो में हलूडी, मांस, पंख, पॉव, पंजे आदि सथ ५ ! और फिर आता है आखिरी कवच, शरीर का ताप गिरा देने की अनौखी क्षमता 1 जब पैंगुइन मानी मॅ शिकार र्फ लिए डुबकी लागतो है था तूफत्मी मौसम में सर्द हवाओं की तीखी मार झेलती खडी होती है तो व्रह अपने खून का ताप ही कम कर देती है, जिससे कम ऊर्जा में मी देह फो गरम बनाए रखा जा सकै । इसवी चाद भी ऐम्परर पेंगुइन शीत ऋतु मॅ धने झुंडों में खडे होकर शरीर से निकलनेवाली ऊष्मा को कमड्डेसे-कम करने की कोशिश करते हैं ।
स्नेबिन्न सर्दी से बचने कै लिए इतने सारे स्वेटर, कोट और’ ओवरकोट पहन लेने कै बाद गरमी कै मौसम में कुछ असुविधा तो होती है खास तौर से ऐम्परर पैमुइन क्रो । गरमी को ऋतु में चौबीसों घंटे सूरज गरर्मा ये तट पर त्येटे एंम्पार ट्विन
चमकता रहता है और धूप बहूत तीखी होती है । उस समय चरबी में लिपटे ऐम्यरर कै शरीर का ताप इतना जढ़ जाता है कि उन्हें अंटार्कटिका में भी लू लग जाने का खतरा हो जाता है 1 तब यह पेंगुइन अपने पंख ख़ड़े फ्लो अपनी देह पर कूलर को तरह ठंडी हवा चलाने की कोशिश कारी हैं । श्या-दृप्तरे से दृर-दृऱ ठोकर फैल जाते हैं. षपर्द पर लेटकर क्या ठंडा करने की कोशिश करतै हैं । और णा स्म सबसे मी कम्म नहीं दृप्ननमोता हूँ। अपनी चों’ष खोलकर गरमी से परेशान फु’ते फी तरह हाँकने 1 ५ एक बातां र्क अंत में सबाल-जवाब कै दौरान एक छोटे बच्चे ने मुझसे पूछा था कि इतनी ठंड में पेंगुइन पीती क्या है 2 उस समय इसका उत्तर मुझें मालूम नहीं था । बाद में मैंने किताबों और फिल्मों में इसका समाधान पाया । पेंगुइन की मुख्य खुराक किल कै शरीर मॅ इतना पानी होता है कि उसको नमी से ही पैंगुइन का काम चल जाता है, यही उसर्क लिए पीने कै पानी का मुख्य साधन है । पर अंडों पर बैठे हुए या चूजों की देखभाल करते हूए पैंगुइन शरीर में पानी को कमी क्रो पूरा करने कै लिए कभी-कभी बर्फ कै कुछ टुकडे भी उठाकर खा जाती है ।
अंब तो अंटार्कटिका में पैंगुइन मारने पर प्रतिबंध है, इसलिए आदमी इनका शिकार नहीं करत्ता है । अतीत में जिन लोगों ने पैंमुइन को खाया है, उन्होंने इसे एकदम बेस्वाद बताया है…सड़े हुए मुर्गे की तरह या बदबूदार मछली की तरह । जिन लोगों ने भी इसे खाया कवल मजबूरी में ही, सिर्फ जान बचाने कै लिए।
अंटार्कटिका की मुख्य भूमि पर पाई जानेवाली ऐडली और ऐम्परर, र्कवल दो ही पैंगुइन भारतीय अभियानों में दिखाई देती हैं । ऐडली छोटी होती है…मुरगी से थोडी बडी और ऐम्परर विशाल है-एक मोटी लड़कौ को तरह । प्रस्तुत है अंटार्कटिका क इन दोनों निवासियों र्क बारे में कुछ रोचक जानकारी ।
ऐडली पैंगुइन
ऐडली पैंगुइन क्री ऊँचाई करीब 2 फीट होती है और वजन होता है 6 किलो तक । यह अंटार्कटिका में सबसे अधिक पाई जानेवालो पैंगुहन है । अंटार्कटिका कै तट पर यह हर ओर सैकडों की संख्या में पाई जाती है । एक वैज्ञानिक गणना कै आधार पर ऐडली पैभुइन कौ कूल संख्या लगभग 50-55 लाख है । इसर्क नामकरण की कहानी भी रोचक है । सत् 1840 में फ्रांस का एक खोजी जहाज इस इलाक का सर्वेक्षण कर रहा था, जिसका कप्तान था ‘दृयूमॉ दी उर्बिल’ । इन लोगों ने पहली चार पैंगुइन कै समूह देखे । इन अनोखे पक्षियों की हर बात मन को लुभा रही थी । उनका मुरगी जैसा आकार, काला और सफेद रंग, मर्राए मरने जैसी फटी सी आवाज, उत्सुक आंखों से निहारने का ढंग, समी कुछ अनोखा था । पर जब उन्होंनै एक मोटो बेडौल औरत की तरह मटक-भटककर एक-एफ कदम लेते हुए चलना शुरू किया, तो जहाज कै कप्तान कै मुँह से सहज ही निकल गया, ‘अरे, देखो तो, यह तो बिलकूल मेरी बीबी की तरह चल रही हैं 1’ उस कप्तान को पत्मी का टाम था ‘ऐडली’ और इस तरह वह गुमनाम मोटी औरत अंटार्कटिका कै इतिहास में अमर हो गई ! !